बेटियों ने मचाई धूम, रियो में भारत की नारी शक्ति में दिखी सोने-सी चमक

भारत की बेटियों पर पूरा हिंदुस्तान गर्व कर रहा है। हमारे लिए यह उत्सव का क्षण है। पीवी सिंधु, साक्षी मलिक ने जहां पदकों का सूखा खत्म किया वहीं दीपा कर्माकर ने अच्छा प्रदर्शन किया। मलिक ने फ्रीस्टाइल कुश्ती में कजाकिस्तान की खिलाड़ी को पराजित कर कांस्य पदक हासिल किया। इन बेटियों ने दुनिया में भारत का मान बढ़ाया है। भारतीय समाज में बेटियों को लेकर फैले भ्रम और उसके मिथक को तोड़ा है। बेटियों ने यह साबित कर दिया है कि अगर उन्हें वैश्विक स्तर की सुविधाएं मिले तो वह भारत का नाम दुनिया में रौशन कर सकती हैं। यह कहावत पीछे छूट गई है कि अगले जनम मोहि बिटिया न कीजो। रियो ओलंपिक में देश को बुलंदियों पर पहुंचाने वाली बेटियों पर पूरा देश गर्वित है। सिंधु और साक्षी मलिक ने जो अपना प्रदर्शन किया वह इतिहास की तारीखों में दर्ज हो गया। पूरा देश जांबाज बेटियों को सलाम कर रहा है।

मैडल जीतने के मौके पर सिंधु ने कहा- “मैं लोगों की ओर से मिली हर चीज के लिए शुक्रगुजार हूं। इस सफलता के लिए कोच और अपने माता-पिता को क्रेडिट देना चाहूंगी।”
वहीं, गोपीचंद ने कहा- “मैं महिलाओं ( सिंधु और साक्षी मलिक) के लिए हैट्स ऑफ करता हूं, जिन्होंने पूरी दुनिया के सामने हमारे सम्मान को बचा लिया। हमें यह समझने की जरुरत है कि नतीजे वैसे नहीं आते हैं, जैसा कि हम सोचते हैं, लेकिन सिंधु ने कोशिश की और उसे हासिल किया। सरकार की तरफ से बहुत ज्यादा सपोर्ट और फाइनेंशियल रिवार्डस मिले हैं। यह शानदार है। मैं आश्वस्त करता हूं कि यह हमें इन्सपायर और कई चैम्पियन्स को तैयार करने में मदद करेगा।”

21 साल की स्टार शटलर पीवी सिंधु ने फाइनल में पहला सेट 21-19 से जीता, जबकि कैरोलिना ने दूसरा सेट 21-12 से अपने नाम किया। तीसरे सेट में सिंधु को 21-15 से हार का सामना करना पड़ा। 12 साल बाद ओलंपिक में बैडमिंटन का 80 मिनट लंबा मुकाबला देखा गया। ओलंपिक 1896 से खेले जा रहे हैं। भारत 1924 से ओलंपिक में महिला एथलीट्स भेज रहा था। उस लिहाज से सिंधु 92 साल में सिल्वर जीतने वाली पहली महिला बनीं।

आज मलिक और सिंधु के लिए राज्य सरकारों और बैडमिंटन फेडरेशन की तरफ से जिस तरह उपहारों की बौछार की जा रही है यही पहले किया जाता तो यह स्थिति और सुखद होती और अनूकूल परिणाम आते। निश्चित तौर पर हमारे लिए यह जश्न मनाने का मौका है लेकिन उससे भी कहीं अधिक अपनी नाकामयाबी छिपाने का भी जश्न है। आर्थिक विषमताओं से जूझ रहे खिलाड़ियों को अगर उस स्तर की सुविधाएं और खर्च उपलब्ध कराएं जाएं तो दुनिया के देश पदक तालिका में भारत का मुकाबला नहीं कर सकते। लेकिन हमारी सरकार, खेल संस्थाओं की नींद कब खुलेगी यह कहना मुश्किल है।खेल पर राजनीति बंद होनी चाहिए। जब तक खेल को लेकर सरकार संजीदा नहीं होगी स्थिति हमारे प्रतिकूल रहेगी। व्यक्तिगत स्पर्धाओं में साक्षी मलिक, पीवी सिंधु और दीपा कर्माकर ने जो भी प्रदर्शन किया है उसमें सरकार का कोई बड़ा योगदान नहीं है। क्योंकि पीवी सिंधु जैसी खिलाड़ी अपनी मेहनत और परिवार के सहयोग से इस मुकाम को हासिल किया है।

दूसरे देश अपने खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देने में ज्यादा पैसा खर्च करते हैं। अमेरिका ने अपने एक खिलाड़ी को रियो में गोल्ड मेडल जीतने की लायक बनाने के लिए 74 करोड़ रुपया खर्च किया है जबकि गोल्ड मेडल जीत जाने के बाद एक खिलाड़ी को इनाम के रूप में सिर्फ 24 लाख रुपये दिए हैं यानी 35 हज़ार डॉलर के करीब। वहीं, ब्रिटेन ने अपने एक खिलाड़ी की प्रतिभा निखारने के लिए 48 करोड़ रुपये खर्च किए हैं लेकिन मेडल जीतने के बाद कोई नगद राशि नहीं दी। इसी तरह चीन अपने एक खिलाड़ी के पीछे 47 करोड़ रुपये झोंके हैं और गोल्ड मेडल जीतने के बाद इनाम के रूप में 24 लाख रुपये दिए हैं। अगर भारत की बात किया तो रियो जाने वाले 119 खिलाड़ियों पर सरकार ने 160 करोड़ रुपये खर्च किए यानी एक खिलाड़ी पर 1.5 करोड़ के करीब लेकिन पदक जीतने के बाद जब इनाम की बात आती है तो रुपयों की बारिश होती है।
अगर हमारे देश में अच्छी अकादमी बनेंगी तो ज्यादा से ज्यादा अच्छे खिलाड़ी निकलेंगे, ज्यादा से ज्यादा पदक मिलेंगे लेकिन हमारी बदकिस्मत यही है कि हमारी सरकारें अकादमी बनाने से ज्यादा श्रेय खरीदने में विश्वास रखती हैं।

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